साथ में जब आपको अपने खड़ा पाता हूँ मैं - ग़ज़ल - चन्द्रा लखनवी

अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती: 2122  2122  2122  212

साथ में जब आपको अपने खड़ा पाता हूँ मैं, 
क्या बताऊँ किस क़द-ओ-क़ामत का हो जाता हूँ मैं। 

मौत तो बरहक़ है जिस दिन चाहेगी आ जाएगी, 
ज़िंदगी तू यह बता क्यूँ तुझसे घबराता हूँ मैं। 

साक़िया हाथों से तेरे पारसा भी पी गया, 
बात ग़ैरों की नहीं ये अपनी बतलाता हूँ मैं। 

क्यूँ भला बुग़्ज़-ओ-हसद में मुब्तला होकर जियूँ, 
प्यार की बंसी बजाता झूमता गाता हूँ मैं। 

दिल में मेरे डर है उसका सामना कैसे करूँ, 
वह महकता फूल है मदहोश हो जाता हूँ मैं। 

ग़ैर को तो पारसाई भी सिखाता हूँ मगर, 
जो हक़ीक़त मेरी जाने उससे घबराता हूँ मैं। 

कौन है जो बेमुरव्वत इश्क़ में घायल नहीं, 
आओ यारो तुमको दिल के ज़ख़्म दिखलाता हूँ मैं। 

मैं फ़रिश्ता या कि कोई देवता तो हूँ नहीं, 
आदमी हूँ आदतन ख़ुदग़र्ज़ हो जाता हूँ मैं। 

ज़िन्दगी की बात कर लो जीना यारों है हुनर, 
बाद मरने के किसी को याद क्या आता हूँ मैं। 

मैं हवस का पुतला हूँ 'चन्द्रा' मुझे तस्लीम है, 
आप की मैं क्यों बताऊँ ख़ुद की बतलाता हूँ मैं। 

चन्द्रा लखनवी - बरेली (उत्तर प्रदेश)

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