रहने दो अभी
रहने दो अभी
फ़िलहाल मुझे किसी का
प्रेम स्वीकार नहीं करना
ना गोपनीय ना उजागर
व्यर्थ विषाद में
डूबकर
अपना उन्मुक्त भरा
जीवन नहीं त्यागना
जो निरुपाय हो
वह प्रेम में पुलकित होकर
बिन बुलाए नए
संत्रास को
जन्म दे और वह
दिगंबर उसी प्रेम में
डूबा रहे।
नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)