घर का ज़िम्मेदार - कविता - अनिल कुमार केसरी

घर का ज़िम्मेदार बने रहना,
सबकी ज़िम्मेदारी में खड़े रहना,
भगवान क़सम...!
बहुत, बहुत ज़िम्मेदारी का काम है।
परिवार के सारे रिश्तों को,
मोतियों की एक माला जैसे,
एक धागे में पिरोना,
बेशक, घर के ज़िम्मेदार का काम है।
सुबह-शाम, हर दिन,
घर का चूल्हा सुलगाना,
भूख में रोटी,
धूप में छाँव बन जाना,
वाक़ई, घर की ज़िम्मेदारी का काम है।
किसी माँ की ममता,
किसी बहिन का प्यार,
और बाप के कंधों का उधार,
अपने कंधों पर उठाना,
सचमुच, घर के ज़िम्मेदार का काम है।
घर का ज़िम्मेदार बने रहना,
सबकी ज़िम्मेदारी में खड़े रहना,
भगवान क़सम...!
बहुत, बहुत ज़िम्मेदारी का काम है।

अनिल कुमार केसरी - देई, बूंदी (राजस्थान)

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