वेदना के गीत - कविता - संजीव चंदेल

चलो वेदना के गीत गाते हैं,
चलो विपदा को मीत बनाते हैं।
दुख की सीमा तो घनीभूत है,
फिर भी सबके मन में प्रीत जगाते हैं।

गीत दर्द की रूबाईयाँ लिखता है,
पिड़ा के दोहे बाँचता है।
अपने विरह वेदना दफ़न कर,
ठहाकों के गीत-ग़ज़ल गाते हैं।

आबोदाना ढूँढ़ता गुमनाम शहर में,
आशियाना ढूँढ़ता डगर-डगर में।
भीड़ में भी अकेला बेसहारा,
लंबी सड़क मंज़िल का पता बताते हैं।

संजीव चंदेल - अकलतरा (छत्तीसगढ़)

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