मनभावन पूर्णिमा - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'

चटक चाँदनी चंद्र किरणें,
शुक्ल आश्विन की पूर्णिमा,
सिंगार राधिका कृष्ण को अर्पित,
प्रेम का महारास है पूर्णिमा।

शरद ऋतु का मोहक चाँद,
वाल्मीकि सा दे अवतार पूर्णिमा,
सत्य आधार राम सिया का,
रस प्रेम माधुरी साज पूर्णिमा।

अनुपम रति शरद रात लुभाती,
कामदेव त्याग सम्मान है पूर्णिमा,
प्रेम की परिपूर्णता देता,
सुखमय जीवन का प्रमाण है पूर्णिमा।

पांयनी नूपुर सुमधुर है बजता,
साँवला बदन दूध सा निखारे पूर्णिमा, 
मंद हँसी चंचल चंद्र मुख मुरली,
मंदिर में जलता प्रकाश है पूर्णिमा।

कलियों का मन मचलता ख़ुद,
फ़ूल सा महकने राग है पूर्णिमा,
मुग्ध है मन, दृष्टि को भी करता,
मनभावन सौग़ात है पूर्णिमा।

ओस अमृत बरसाता आसमान,
तारों की बारातों से सजी पूर्णिमा,
सकारात्मक ऊर्जा दे तन मन में,
औषधीय चमत्कार है पूर्णिमा।

रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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