कन्या भ्रूण हत्या - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

ऐ जग वालों! ये दर्द हमारा,
रो रोकर तुम्हें सुनाती हूँ।
गर्भस्थ शिशू कन्या निरीह,
संसार त्याग मैं जाती हूँ।

ऐ मानव! तू तो दानव है,
केवल अधिकार तुम्हारा क्या?
तूने क्यूँ मुझको मार दिया,
था मैंने तेरा बिगाड़ा क्या?

गर्भस्थ शिशू की हत्या कर,
तूने कितने अपराध किए।
मैं दुनिया को ना देख सकी,
पापी तूने क्यों घात किए।

मैं वापस प्रभु के पास गई,
उनके चरणों में शरण लिया।
फिर परमेश्वर से भेंट हुई,
मेरी पीड़ा का श्रवण किया।

मैं दुनिया में जा तक ना पाई,
ऐसा मुझ पर था वार किया।
बहु असह वेदना दर्द दिया,
आने से पहले मार दिया।

इंसाँ कहलाते सर्वश्रेष्ठ,
पर कैसा ढोंग रचाते हैं।
इतनी नफ़रत धोखा तो,
वो पशु भी नहीं रचाते हैं।

ये कैसी तेरी दुनिया है,
अब प्रभु से मुझको कहना है।
ना जनम मिले अब धरती पर,
उस जग में अब ना रहना है।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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