दौड़ में जुटने लगे हैं आदमी अब - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122  2122  2122

दौड़ में जुटने लगे हैं आदमी अब,
छोड़ के बैठे पुरानी सादगी अब।

बढ़ गया काग़ज़ के फूलों का चलन है,
नक़ली फूलों की बढ़ी आवारगी अब।

चाहतों का दौर पहुँचा है शिखर पे,
बढ़ रही संसार के प्रति तिश्नगी अब।

आ रही ताज़ी हवा मत रोकिएगा,
आप अपने पास रखिए बेचारगी अब।

बढ़ रहें अपराध दुनिया भर में कितने,
हर तरफ़ होने लगी है राहजनी अब।

है दिखावा साज-सज्जा का समय ये,
कौन करता दिल से कोई बंदगी अब।

हमको अपने काम से मतलब है रखना,
छोड़िए अब व्यर्थ की दरियादिली अब।

नागेंद्र नाथ गुप्ता - ठाणे, मुंबई (महाराष्ट्र)

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