छल - कविता - सचिन कुमार सिंह

कहते थे तुम मुझसे,
एक साथ ही चलोगे।

लगा था मुझको ऐसा,
कभी दूर ना करोगे।

शंकाएँ जब भी आईं,
शिथिल मन भी डोला।

अपने मन में मैंने,
हर बार यही बोला।

मुझसे छल करोगे,
पश्चाताप कल करोगे।

छल को हाथ पा कर ,
जब मैं निकल पड़ूँगा।

आएँगी विपदाएँ,
फिर कैसे हल करोगे।

फिर कहीं जाकर,
वादें बड़े करोगे।

उसे भी छलके तुम,
पश्चाताप ही करोगे।

प्रेम पथ पर ऐसे,
आगे नहीं बढ़ोगे।

सचिन कुमार सिंह - छपरा (बिहार)

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