बोलती आँखें - कविता - बृज उमराव

आँखों की है बात अजब सी,
नैनों का संसार निराला।
आँखों में बस्ती है दुनियाँ,
नज़रों से दिखता जग सारा।।

ग़ुस्से में दिखती यह लाल,
नीली आँखों की क्या बात।
कजरारी गहरी सी आँखें,
इनकी न है कोई बिसात।।

गहराई जो आँखों की है,
थाह न इनकी मिल पाई।
नशीली आँखों संग नर्तकी,
एक निराली छवि पायी।।

मांणा, नखुना, भिन्न कष्ट,
ब्याधि की अपनी अलग कहानी।
ग़ुस्सा, ममता, प्रेम, तपस्या,
सबके ढंग अरु बात निराली।।

प्यार आँख में जब दिखता,
घाव जिगर तक कर जाता।
दिल में बेचैनी बढ़ती,
कहीं भी मन बिल्कुल न लगता।।

आँख मिलाना, आँख मारना,
बोझल पलकों के भिन्न नज़ारे।
दिल की बातें इनसे समझें,
आँखों के है ग़ज़ब इशारे।।

आँखों में इतिहास छुपा है,
आँखों मेंहर राज़ छुपा है।
करुणा ममता की यह सागर,
इनमें इक शैलाब छुपा है।। 

आँखों में संसार है बसता,
आँखों में है प्यार उमड़ता।
व्यक्त न हो पाए शब्दों में,
ऐसा राज़ भी इनमें छुपता।। 

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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