उड़ान - कविता - अनिकेत सागर

परिंदों सा उड़ना जब सीख लेगा तू,
धरती से अंबर तक तेरा नाम होगा।
टूटी शमशीरों से लड़ना सीखेगा तो,
हर शख़्स तुझे करता सलाम होगा।

राहों में चाहें दिखेंगे अंगारे ही अंगारे,
तुझे इस डगर पर चलना तो पड़ेगा।
तभी दुनिया की भागादौड़ी से सारी,
तकलीफ़ें पार कर के आगे निकलेगा।
सारा ज़माना साथ देगा जब से तेरा,
सबसे हटके सबसे अलग काम होगा।

लोगों के तानाशाही से तंग ना आना,
टाँग खींचाई की यही रीत होती है।
सुन दिल की तू अपने मन की यारा,
नहीं तो ज़िंदगी ग़म ही ग़म ढोती है।
शुरूआती दौर में गर मेहनत करेगा,
जीवन-भर के लिए फिर आराम होगा।

बंद आँखों से ख़्वाब बुनना अच्छा नहीं,
हक़ीक़त में देखें सपने पूरे होते हैं सभी।
मन हारता थक सा जाता उसे उठाओं,
दौड़ाओ सोने ना देना उसको तुम कभी।
सितारों को मुठ्ठी में लेने की कर हिम्मत,
तेरे हाथों में सारा का सारा आयाम होगा।

अनिकेत सागर - नाशिक (महाराष्ट्र)

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