खिड़की से आने लगी हवा - कविता - अशोक बाबू माहौर

खिड़की से
आने लगी हवा
थोड़ी-थोड़ी
लहराने लगे कुछ कपड़े
जो टँगे थे
उदास
खूँटी पर
कल परसों से।
झूमने लगे
स्तंभ से तने
पेड़-पौधे
जैसे मिल गई
राहत बेदर्दी गर्मी से।
झाँकने लगे
कुछ बच्चे खिड़की से
मानो कर रहे स्वागत
शीतल मंद समीर का
प्यारी मुस्कान जगाकर।

अशोक बाबू माहौर - मुरैना (मध्यप्रदेश)

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