प्रेम सन्देश - कविता - बृज उमराव

सोच धनात्मक सब पर भारी,
केवल लक्ष्य दिखाई दे।
उद्देश्य सदा से एक हो अपना,
सफलता शब्द सुनाई दे।।

प्रतिद्वन्दी जब कर सकता है,
हम क्यों पीछे रह जाएँ।
मज़बूत करें ख़ुद को इतना,
ज़ुल्म न कोई कर पाएँ।।

भारत माता माँग रही,
बलिदान देशहित वीरों का। 
सेवा, त्याग, समर्पण चहिए,
है वक़्त नहीं तक़रीरों का।। 

नफ़रत की दीवार मिटा दें,
हम सब का इक ख़ून है लाल। 
जब टूटे साँसों का बन्धन,
केवल रहता एक मलाल।। 

काश कहीं ऐसा हो जाता,
तो फिर ऐसा न होता। 
किन्तु परन्तु की बहस न होती,
पिता पुत्र को न खोता।। 

कट्टरता से कुछ न मिलेगा,
हिल मिल कर सब काम करें। 
हो विनम्र सद्भाव बढ़ाएँ,
कटुता का काम तमाम करें।। 

ईर्ष्या द्वेष घृणा कटुता,
इन शब्दों का स्थान न हो। 
प्रेम प्यार करुणा ममता,
से बढ़ कर कोई नाम न हो।। 

अभी समय है आँखें खोलो,
अब विलंब का काम नहीं। 
मन में होवे राष्ट्र भावना,
तन को अब आराम नहीं।। 

काश अगर हम मिल कर चलते,
कबके विश्व गुरु बन जाते। 
राष्ट्र भाव से उत्प्लावित हों,
कितने पीछे चलकर आते।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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