प्रेम प्रसंग - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

मैं शीत संवर का प्रेमी हूँ
तू आतप मुझे समझता है
मैं सीधा साधा परवाना हूँ
तू छलिया मुझको कहता है।

मैं चलता हूँ जिन राहों में
शांति अंलकृत होती है
मैं रहता हूँ जिस कुसुमाकर में
रति ताल झंकृत होती है
मैं तुझको ये बतलाता हूँ
फिर भी, तू द्वेष राग का
स्वामी मुझको कहता है
मैं शीत संवर का प्रेमी हूँ
तू आतप मुझे समझता हूँ।

माना मैं रहता हूँ जज़्बातों में
फिर भी, प्रेम तनय न छोड़ा हूँ
जज़्बातों में मेरे भाव अलख हैं
मैं प्रीती डोर न तोड़ा हूँ।

मैं संयोग प्रणय का आबिद हूँ
तू कुप्सा का सौदागर मुझको कहता है
मैं शीत संवर का प्रेमी हूँ
तू आतप मुझे समझता है।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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