राम नाम मधुशाला हो - कविता - अंकुर सिंह

माफ़ी माँगों तुम भूलों की,
छोड़ तन सभी को जाना हैं।
साँसे अपनी पूरी करके,
पंचतत्व में मिल जाना है।।

दुनिया का बुद्धिमान प्राणी,
मानव ही तो कहलाता हैं।
श्री राम नाम का जप करके,
जन्म मरण को तर जाता हैंं।।

चौरासी लाख जन्म खोकर,
तुम मानव तन को पाएँ हो।
न हो फिर जन्म चक्र का फेरा,
क्या ये निश्चय कर आएँ हो?

मिला श्वास गिन गिन कर सबको,
सुकर्म कर सबको जाना हैं।
न करों घमंड तुम दौलत का,
सब छोड़ यहीं सबको जाना हैं।।

है प्राणवायु जब तक तन में,
भू पर कुटुंबकम् लाना है।
डगर कठिन हो चाहे जितना,
श्री राम नाम अपनाना है।

सफ़र में हो ऐसे नेक कर्म
फिर लौटकर ना आना हो।
हो जीवन में उद्देश्य अपना,
पास राम नाम मधुशाला हो।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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