प्रेम वीणा - कविता - राजीव कुमार

प्रेम की वीणा बज उठी
उकसा रहा है इसका गुंजन,
है युगों युगों से करता मन
अपने प्रियतम का ही पूजन।

नवरस रंग के पुष्प ने 
पहनाया है जो प्रेम का हार,
कैसे करूँ महक अभिव्यक्त
कैसे व्यक्त करूँ आभार।

कलरव करते पक्षियों ने 
उनसे बोली उधार ली है,
पुष्प की कोमलता क्या है 
अपनी छवि निखार ली है।

राजीव कुमार - बोकारो (झारखण्ड)

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