पतझड़ देते है संदेशे - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद

रंग गुलालों के मौसम ने
ढेरों ख़ुशियाँ लाई है।
पतझड़ देते है संदेशे
फागुन की ऋतु आई है।।
पेड़ों पर पत्तों के किसलय 
कोंपल बन कर आई है।
मनमोहक ऋतुराज यहाँ है 
मादकता भी छाई है
आम्र के बौरों और महुआ का 
गंध यहाँ खींच लाई है।
पतझड़ देते...।
फाल्गुन के कोरे चुनर पर
मौसम ने रंग फेका है
तितली आएँगी बगियन में
फूलों को अंदेशा है
मंगल गुंजन करते भौरें
गूँज उठी शहनाई है।
पतझड़...।
ऐपन थाप जब भाभी देती 
शोख़ ननद के गालों पर
रंग उड़ेल कर भागे देवर
उलझे-बिखरे बालों पर
सबसे छोटकी देवरानी ने
पटक के रंग लगाई है
पतझड़...।
खेलूँगा मै राधा के संग
कृष्ण भी आस लगाए है
फाग हो ब्रज या बरसाने का
गोपी संग हर्षाए है।
ग्वाल-बाल सब ताल ठोकते
श्याम न बंसी बजाई है।
पतझड़...।

डॉ॰ कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos