चाँदनी - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'

नभराज तारकेश्वर ने
तारिका नक्षत्रों की सभा बुलाई 
चन्द्रप्रभा रानी श्वेत पोशाक में सज कर आई
शीतल सौम्य हवा भी स्वागत कर इतराई
तारों ने भाँति-भाँति तिलिस्म रूप धर कर
कौशल कई दिखा डाले
चाँद संग चाँदनी ताली बजा मुस्कुराई
आसमानी राज दरबार सजाने में
नवरत्न राज दरबारी हो गए व्यस्त
चाँद ले चला चाँदनी को
नभमंडल भ्रमण करवाने
अर्धरात्रि बीत गई, हँसी और ठिठोली में
खिलती हुई चाँदनी की लौ हो जाएगी मद्धिम
यह सोच चाँदनी हुई उदास
चाँद होकर व्याकुल पूछा
क्या हो गया, क्यों हो उदास,
चाँदनी बोली, कुछ देर में ही
छोड़कर मुझे चले जाओगे
आठ पहर बाद
फिर मुख अपना दिखाओगे
चाँद पकड़ कर हाथ चाँदनी का
बोला, मत हो उदास
अर्ध मास मैं तुम संग 
तेरा बन रहूँगा अर्द्धव्यास
उजास से भरी चाँदनी समा गई चाँद में
प्रेम प्रकाश में हो गई लुप्त
फिर मिलन की आस में...।

अवनीत कौर 'दीपाली' - गुवाहाटी (असम)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos