प्यार की तलाश - कविता - बृज उमराव

प्रेम प्यार में पागल परिणति,
पल पल यूँ मनुहार रही।
होश नहीं ख़ुद का कुछ अपना,
सजन साँवरे पुकार रही।।

दिल के द्वारे तुम आ जाओ,
दूर तलक मैं तुझे निहारूँ।
बोझल पलकें अलशाई सी,
प्रियतम प्यारे तुम्हें पुकारूँ।।

स्वाद साथ सब भूल गई मैं,
बेताबी का आलम है।
दूर तलक छाया सन्नाटा,
छुपा कहाँ तू बालम है।। 

प्रीति की रीति सिखाकर भागा,
प्यार के अंकुर जगा दिया। 
दिन कटता है इन्तज़ार में,
रात की नींदें उड़ा दिया।। 

प्यार की एक तलाश निराली,
मधुर मिलन को मन हरषे। 
मधुर बाँसुरी की सुर लहरी,
यौवन मधुरस को तरसे।। 

आज जिगर में आग लगी है,
आकर तुम्हीं बुझा जाओ। 
आलिंगन के मधुर पाश में,
आकर तुरंत समा जाओ।। 

दिल का दरिया कितना गहरा,
थाह नहीं तुम पाओगे। 
जितना ज़्यादा तुम डूबोगे,
पास हमें तुम पाओगे।। 

हम तुम दोनों इक होंगे,
कोई नहीं दूजा होगा। 
कामदेव का रूप बनाकर,
पास मेरे आना होगा।। 

प्रेम की इस मधुबेला में,
आतुर मधुर मिलन होगा। 
अलि कली के संग समाहित ज्यों,
यों अपना संगम होगा।। 

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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