चल कर आती है भोर - गीत - डॉ॰ सुमन सुरभि

शबनम में भीगे से फूलों की शाखों पर 
रंग बिखराती तितलियों के पाँखों पर 
बुझे हुए दीपों के कृष्णकाय ताखों पर 
कजरारी अलसाई अधखुली आँखों पर 
होती दिखती विभोर,
चल कर आती है भोर। 

तुलसी के अर्चन में, देवों के बंदन में 
पूजा की थाली में माथे के चंदन में
अंगना बुहारती बधुओं के कंगन में 
सागर की लहरों पे, कानन में, उपवन में 
फैली है ओर छोर,
चल कर आती है भोर।

गाँवों की गलियों में शहरों की हलचल में 
पनघट की राहों में गागर के मधुजल में 
चिड़ियों के कलरव में, नदियों की कलकल में 
भोजन प्रसादों की पावन सी परिमल में 
हर्षित है पोर-पोर 
चल कर आती है भोर।

डॉ॰ सुमन सुरभि - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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