बस इतना जानता हूँ आप का हूँ - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222  1222  122

बस इतना जानता हूँ आप का हूँ,
मैं जैसा भी हूँ अच्छा या बुरा हूँ।

वफ़ा की राह पर क्या चल पड़ा हूँ,
अजब हैरत है तनहा रह गया हूँ।

कई नज़रों में बेहद चुभ रहा हूँ,
ख़ता है सीधा-सीधा बोलता हूँ।।

शिकायत इनसे उनसे कर रहे क्यों,
कहो मुझसे अगर सच में बुरा हूँ।

मेरे वालिद महज़ वालिद नहीं हैं,
इन्हें मैं देवता सा पूजता हूँ।

कोई नाराज़गी तुम से नहीं बस,
मेरी आदत ही है कम बोलता हूँ।

'नितान्त' उसकी मोहब्बत का असर है,
सरापा इश्क़ में डूबा हुआ हूँ।

समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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