कमरे का एक कोना - कविता - प्रतिभा नायक

कमरे का एक कोना 
कुछ इस तरह से
सजा के रखना...
चाँद तारों से भरी
दीवार हो...
जुगनूओं से जगमगाती
हुई तार हो...
कोने में एक सूरज का 
दिया जला के रखना।
कमरे का एक कोना 
ख़ुद के लिए
सजा के रखना।

नदीयों को गुज़रने की
जगह हो वहाँ...
फूलों का गलीचा बिछा
हो जहाँ...
वहाँ की हवा भी
भी तुकबंदी करे
‌पंछी भी आकर वहाँ
गुटबंदी करें...
ज़मीं और आसमाँ
मिलते हो जहाँ...
उस कोने को इस
तरह बना के रखना।

जहाँ लफ़्ज़ मोतीयों 
की तरह पन्नों पर गिरे...
जहाँ ख़ामोशी की
अपनी आवाज़ हो,
लम्हों को समेटने
का रीवाज़ हो...
वहाँ तुम, ख़ुद से मिलने जाना,
कमरे के उस कोने को
कुछ इस तरह से सजाना।

प्रतिभा नायक - मुम्बई (महाराष्ट्र)

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