नया साल - कविता - मुरारी राय 'गप्पी'

जाने वाले को जाने दो,
आने वाली को आने दो,
रात ग़म की बीत गई, क़दमों को बढ़ने दो,
पट खोलो, नव विभोर को होने दो,
बाहर तो माया है, अंदर न रहने दो,
तुम प्रेम बाँटो, नफ़रत न रहने दो।

जाने वाला जा रहा है न घबराओ,
आने वाला आ रहा है न शरमाओ।

सब अच्छा है, कुछ पागलपन बदलो,
कुछ नहीं तो अपनी आदत ही बदलो,
बदल सको तो अपना मन बदलो,
फ़ोन छोड़ कर, अपने प्रेमी संग चल दो,
चल दोगे तो ख़ूब बढ़ेगा रक्त तुम्हारा,
रख दोगे तो ख़ूब बचेगा वक्त तुम्हारा।

बच्चों को बचपन जी भर जीने दो,
ख़ूब खेलें कूदें, धूप पसीना पीने दो,
करें मनमानियाँ, सपनों में खो जाने दो,
नटखट सी खट-पट अपनों में हो जाने दो।

बेच सको तो फ़ोन बेचकर ख़ुशियाँ घर में आने दो,
न ख़ुद रूठो, कुछ रूठों को ख़ुशी से घर में आने दो,
जीवन क्या है कैलेंडर, मत व्यर्थ ही बीत जाने दो,
महँगा हुआ है सिलेंडर, खाना चूल्हे पर बन जाने दो।

बच्चे जाने अपनी संस्कृति, गाँव में रम जाने दो,
चेतना जागे आए जाग्रति, मन में राम बस जाने दो।

मुरारी राय 'गप्पी' - करैला, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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