सन् 2022 - कविता - रतन कुमार अगरवाला

सन् 2022 का होगा आग़ाज़, होगा शुरू एक नया सफ़र,
नई उड़ान का होगा अंदाज़, होगा नई आशाओं का मंज़र।
बढ़ेंगे क़दम फिर मंज़िल की ओर, नवचेतना का होगा संचार,
2022 की उड़ान का सफ़र, होगा नई ऊँचाइयों का आधार।

सनातनी संस्कृति का विश्व में, परचम फिर से फहराएगा,
एक बार फिर विश्व में, भारत विश्वगुरु कहलाएगा।
नये विचारों का होगा जन्म, समरसता का करेंगे आचमन,
सभी धर्मों के ऊपर एक धर्म, होगा मानव धर्म सर्वप्रथम।

भारत फिर एक बार विश्व में, सोने की चिड़िया कहलाएगा,
पुरे ब्रह्मान्ड में अब तो, तिरंगा शान से लहराएगा।
हिन्द महासागर की लहरें जब, गाएगी राष्ट्र के जय गान,
गंगा, यमुना, सरस्वती मिलकर जब, गाएगी मधुर मंगल गान।

हिमालय की कंदराओं से, बहेगी फिर संस्कारों की जलधार,
ऋषि मुनि करेंगे अश्वमेध, भगवत गीता की बहेगी बयार।
भगवान राम और माता सीता, फिर होंगे धरा पर अवतरित,
भगवान शिव और माता पार्वती, फिर होंगे कैलाश पर आसित।

कृष्ण की बाँसुरी करेंगी, गोकुल में सुरों की मधुर पुकार,
नाचेंगी राधा संग गोपियाँ झूम झूम, बजेगी पायलों की झंकार।
देश के अंदर कंसों का, कृष्ण करेंगे सुदर्शन से संहार,
बादलों पर आएँगे हनुमान, करेंगे राम की जय जयकार।

भरेंगे मिलकर सभी सफलता की उड़ान, 2022 में करेंगे धूमधाम,
लेकर नया प्रण मन में, गढ़ेंगे भारत की नई पहचान।
भ्रष्टाचार का करेंगे खात्मा, धर्म और सदाचार की होंगी बातें,
2022 की पहली सुबह, बाँटेंगे मिलकर ख़ुशियों की सौग़ातें।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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