नव वर्ष: स्वागत और विदाई - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

आइए हँसी ख़ुशी
विदा करें दो हज़ार इक्कीस,
न ईर्ष्या द्वेष नफ़रत करें,
न कोई शिकवा शिकायत करें,
जो बीत गया उसे लौटा नहीं सकते
फिर जाते हुए मेहमान से
दुःखी होकर भी क्या पा सकते हैं?
बीती बातों को बिसार दो,
उत्साह से उसे विदा करो
तीन सौ पैंसठ दिन उसनें 
जैसे भी हो साथ निभाया है,
वादा इतने ही दिन साथ निभाने का था
ईमानदारी से निभाया है।
अब लौटकर नहीं आएगा,
हमारी स्मृतियों से निकल भी नहीं पाएगा,
पर हमसे हमेशा के लिए दूर हो जायेगा।
लेकिन साथ निभाने के लिए
हमें अपना भाई दो हजार बाइस
फिर भी सौंप ही जाएगा।
दो हज़ार बाइस का खुले मन से 
स्वागत, वंदन, अभिनंदन कीजिए,
इक्कीस की खीझ न बाइस पर निकालिए,
इक्कीस जैसा भी था अब जा ही रहा है,
बाइस अपनी नई ऊर्जा के साथ 
365 दिन के लिए आ ही रहा है।
बस थोड़ा संयम रख 
अपना रवैया बदलें,
दोष लगाने से अच्छा है
पहले ख़ुद में भी झाँक लें।
उत्साह उमंग या अतिरेक से बचें,
अपना और अपनों के साथ-साथ
समाज, राष्ट्र और संसार का भी
थोड़ा थोड़ा ही सही ख़्याल भी करें।
संयम, सद्भाव, सदाचार, प्रसन्नता संग
जाने वाले को विदा करें,
आने वाले का स्वागत करें।
2021 तुझे विदा देते हैं,
तुम्हारे जाने से मन भावुक हो रहा है
मगर आना जाना संसार की रीति है,
2020 गया था तब तुम आए थे,
अब तुम जा रहे हो तभी तो
हम 2022 के स्वागत में
फूल माला लिए सबके संग खड़े हैं।
बहुत ही प्रसन्न मन हैं।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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