हे राम!
यह देश
सदा तुमसे परिभाषित।
कोई लाख चाहे कि
तुम रहो निर्वासित।
फिर भी यह देश
तुम से परिभाषित।
ऐसा है व्यक्तित्व तुम्हारा
ऐसा चरित्र तुम्हारा है,
हर युग में और हर जन्म में
रावण तुमसे हारा है।
तुम्हारा नाम आते ही
मन में कितने दिए जल जाते हैं,
फिर भी कुछ लोग
ऐसा करने में कतराते हैं।
उनको तुम्हारा निर्वासन प्यारा
प्यारा वनवास तुम्हारा है,
उनकी हर दिन राजनीति को
यही विचार सुहाता है।
पर वह जन जो इस देश की
झोंपड़ियों में रहता है,
उसके मन में और जिह्वा पर
बस राम-राम ही रहता है।
सुबह-सवेरे या हो शाम,
शीतल पुरवाई या हो घाम,
मिलने में है राम,
घर वापस जाते राम-राम।
शिशु जन्म समय में राम
मृत्यु-शैय्या पर राम-राम
तारक-मंत्र एक है
राम राम बस राम।
इस जन के मन में
राम की ऐसी सूरत बसती है,
तन पर धारण जोग, माथे पर मुकुट
राम की ऐसी मूरत बसती है।
मन में हुआ अभिषेक राम का
आँखों में छवि वैरागी की,
ऐसी ही छब बसी हुई है
विष्णु के अवतारी की।
ऐश्वर्य और वनवास
राम के साथ-साथ में चलते हैं,
जब राज-पाट को छोड़ राम
जंगल-जंगल में फिरते हैं।
जिन्हें राम का निर्वासन प्यारा, रहे...
रहे साथ ही स्मरण...
असुरों का संहार राम
वन में रह कर ही करते हैं।
डॉ॰ गीता नारायण - गुरुग्राम (हरियाणा)