मेरा परिवार मेरी आन - कविता - अर्चना कोहली

संस्कारों के माणिक्य से सुंदर परिवार बनता है,
त्याग-विश्वास डोर से प्यारा घर-संसार बनता है। 
परिवार से मिलती है वट वृक्ष-सी मज़बूत छाँव,
अनन्य प्रेम-धारा से संगठित परिवार रहता है।। 

संघर्ष-कंटक से जब मन हमारा उद्वेलित रहता,
आपत्ति भँवर में फँस समाधान न खोज पाता।
तब परिवार ही हम सबका मज़बूत संबल बनते,
अपनेपन की डोर से जीवन एक उपहार लगता।।

जब प्रीत-विश्वास की जगह घृणा-द्वेष ले लेते,
विषधर सम कुंडली मारकर वे सब बैठ जाते।
तो सर्वदा बिखर जाते रेत की तरह घर-परिवार
भीषण पाषाण से कठोर जब हृदय बन जाते।।

बाँटकर हर चीज को खाना परिवार सिखाते है,
समर्पण-त्याग की कस्तूरी से कंठ-हार बनाते हैं। 
प्रस्तर से मज़बूत होते स्नेह बंध से बने परिवार,
किसी भी हालात में स्व आदर्शों को न वे खोते।।

हर रिश्ते की सौंधी महक और सम्मान यही है,
तालमेल की सुंदर सीख से बढ़ी शान इसकी है।
निस्तेज ही जीवन बीतता रहता है बिन इनके,
मायके से ससुराल तक ख़ुशी का गान यही है।।

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos