शिक्षक दिवस - कविता - रतन कुमार अगरवाला

ज़िंदगी में सर्वप्रथम गुरु,
हमारे माता पिता को नमन।
उनके बाद आते शिक्षक,
जिनका करूँ मैं अभिनंदन।

“अ” से लेकर “अ:” तक,
“क” से लेकर “ज्ञ” तक।
अनपढ़ को देते ज्ञान और सबक,
वंदनीय हैं हमारे सारे शिक्षक।

कच्ची मिट्टी को देते रूप,
देते सबको समुचित स्वरूप।
पठन के प्रति जगाते चाह,
बच्चों को दिखाते सही राह।

सजाते हैं उनका वर्तमान,
भविष्य को देते अंजाम।
कराते ज़िंदगी में संघर्ष,
देते एक उच्च आदर्श।

ख़्वाबों की दुनिया से निकाल,
देते हक़ीक़त का धरातल।
सिखाते, रहना अचल अटल,
मुश्किलों में कैसे रहें अविकल।

थपेड़ों से हैं जूझना सिखाते,
जीवन का सच्चा ज्ञान कराते।
देशप्रेम का वे भाव जगाते,
बड़ो बुजुर्गो का सम्मान सिखाते।

बच्चे तो होते कोरे पन्ने,
बनाते उन्हे किताब के पन्ने।
लिखवाते विश्वास की इबारत,
करवाते सरस्वती की इबादत।

निकालते हैं उन्हें अँधेरों से,
नहलाते हैं ज्ञान प्रकाश से।
बनाते हैं उन्हें प्रकाश का पुंज,
देते हैं उन्हें ज्ञान का कुंज।

आ रही तारीख़ पाँच सितंबर,
सर्वपल्ली सर का जन्म दिवस।
शिक्षकों को करें हम नमन,
मनाएँ सब शिक्षक दिवस।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का आया,
महान दिन वंदनीय जन्मदिन।
उन्होंने ही कहा था मनाने को,
शिक्षक दिवस, ५ सितंबर के दिन।

गुरुजनों के दें गुरु दक्षिणा,
करें उनके आदर्शों का आचमन।
जिन्होंने हमें दिखाया सही मार्ग,
उन गुरुओं को हम करें नमन।

चलेंगे उनके ही आदर्शों पर,
ले सभी इस दिन यह प्रण।
दिखाई उन्होंने सत्य की राह,
करें सदा उनका हम वंदन।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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