मनीषा श्रीवास्तव 'ज़िंदगी' - बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)
ख़ामोशी है पसरी ग़ज़ल रुबाई चुप है - ग़ज़ल - मनीषा श्रीवास्तव 'ज़िंदगी'
सोमवार, सितंबर 13, 2021
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती: 22 22 22 22 22 22
ख़ामोशी है पसरी ग़ज़ल रुबाई चुप है,
फ़िज़ा में गूँजती हुई ये तन्हाई चुप है।
दर्द छुपा बैठी दुल्हन घूँघट में अपने,
उसके आँगन में बजती शहनाई चुप है।
रूठ गया शृंगार नया-नया है उसका,
चेहरे पे बिंदिया लाली की रानाई चुप है।
तन्हाई से दामन जोड़ लिया है उसने,
उसकी अठखेलियाँ और अँगड़ाई चुप है।
नवजीवन के ख़्वाब बुने थे संग में उसने,
उसका वो हमदम आशिक़ शैदाई चुप है।
अम्बर से भी बरस रहीं लहू की बुँदे,
आँगन की तुलसी बाग़ अमराई चुप है।
छोड़ दी ज़िंदगी उसने जीने की उम्र में,
माँ-पिता के आँखों की गहराई चुप है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर