शेष है - कविता - शुभोदीप चट्टोपाधाय

मैं मूरत हूँ अनगिनत दागो का 
हर द्वेष हृदय में शेष है,
मैं राग हूँ गरजते संगीत का 
देखना बज्रपात अभी शेष है।

अनिमेष मैं सेनापति
मृत्युंजय का एहसास है,
हृदय लटपट रक्त से भरी
यथार्त देखना अभी शेष है।

उद्वेग कई है मन में 
सबका अंत देखना अभी शेष है,
निरंजन के इस देश में 
वैराग्य समझना अभी शेष है।

हर क़िस्म से गुज़रने की कोशिश कर 
धर्म को तोलना अभी शेष है,
हार जीत की सभी सीढ़ियों को चढ़कर 
प्याला उठा, लीला समझना अभी शेष है।।

शुभोदीप चट्टोपाधाय - धनबाद (झारखण्ड)

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