प्रेम सूत्र - कविता - बृज उमराव

कच्चे मन की कोमल तह पर,
कच्ची कलियों का हार मिला।
परिपक्व प्राप्त के अवसर तक,
इक सुन्दर उपहार मिला।।

निखर पंखुरी ज्यों प्रातः,
मधुमास मे मधु संचयन करे।
मधु के लालच मे मनमाखी,
मोहित मडराए चयन करे।।

त्याग तपस्या तप मे तपती,
धूप में भी बिल्कुल न थकती।
यत्र-तत्र सर्वत्र कहीं भी,
उड़ने में सकोच न करती।।

उद्देश्य एक लेकर अपना,
निडर राह पर वह चलती।
अवरोध की कोई फ़िक्र नहीं,
सुगम राह को वह चुनती।।

प्रेम सूत्र मे बंधे जो जन,
कठिन राह पर बढ़ जाते।
कुछ बन्धन राहें रोक रहे,
पर लक्ष्य सदा हासिल करते।।

निश्छल और निडर निर्मल,
पावक सा पवित्र प्रेम तेरा।
ज्यो मख्खी का मधु संचन,
शुद्ध सुभग निखरा निखरा।।

कर्म धर्म हो शुद्ध हमारा,
ढोंग कपट से दूर रहें।
गौरवान्वित हो जीवन सारा,
नव क्षेत्र में जन मशहूर रहें।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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