प्रवीन 'पथिक' - बलिया (उत्तर प्रदेश)
कुछ कहना नहीं चाहता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
गुरुवार, अगस्त 26, 2021
अब मै कुछ कहना नहीं चाहता!
सुनना चाहता हूँ;
उस निस्तब्ध निशा को।
जिसके गहन अँधेरे में,
एक अजीब मासूमियत छिपी होती है।
सागर में उठती तरंगों को,
जिसकी कसक तरंगों के रूप में तरंगायित होती है।
नदियों के बहते जल की पीड़ा को,
जो समुद्र में मिलकर
अपना आस्तित्व खो देती है।
और
उन तमाम भूखी नंगी आँखों को,
जो सड़कों के किनारे
आने जाने वाले राहगीरों की आँखों में
आर्त निगाहों से देखती रहती हैं।
कारण
ईश्वर के सच्चे प्रतिमान का दर्शन,
होता है इन्ही गहन अँधेरे में।
नदियों के बहते जल में;
और भूखे नंगो की आँखों में;
एक अजीब कसमसाहट,
होती देख दुनिया के यथार्थता को।
तीव्र अंतर्विरोध,
मन औ मस्तिष्क को झकझोर कर
कर देता चेतना शून्य।
इसे मानवता की नियति कहूँ!
या ईश्वर की विडंबना।
हर तरफ़ लोगो के मन में,
एक दूसरे के प्रति रोष, द्वेष, जातिगत वैमनस्य।
जो क्षुब्ध कर देता चित्त को।
लगता है ऐसे
जैसे प्रेम का स्थान घृणा ने,
आशा का निराशा ने,
प्रसन्नता का विषाद ने,
और ले लिया है मंगल का अमंगल ने।
घोर निराशा से भरा जीवन,
कब छटेगी ऐसी छटा!
कब मिलेगा लोगो का हृदय?
और मिटेगा मन का संताप।
यह प्रश्न;
कब तक प्रश्न बना रहेगा?
कब तक सोचने पर मजबूर करता रहेगा?
कोई ज्ञात नही;
दिखता कोई हल नहीं।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर