अंधियारों के पास रहा हूँ - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

अंधियारों के पास रहा हूँ,
उजियारों से दूर।
अन्धकार नें सदा किया है
पथ दर्शन भरपूर।

कितना प्यार मिला है उनसे
कितना है अनुराग?
दु:ख के पल में सजल नयन से
झलके अरे! विराग।
उनका है संसार अकेला
पीड़ा केवल राग।
अंधियारे अस्मिता छिपाए
जीते खाकर साग।

अंधियारों में नूर छिपे हैं
उजियारे मद चूर।

दुर्दिन देखे अंधियारों नें
उजियारे जागीर।
अंधियारों के घर  सूने हैं
उजियारों के भीर।
अंधियारों का चंदा साथी
उजियारों का सीर (सूरज)।
अंधियारे कितने असुरक्षित
वे रक्षित प्राचीर।

अंधियारों की ओर चले हैं
उजियारों के शूर।

अंधियारों ने बेटी व्याही
उजियारों के ठाँव।
प्रेम न शान्ति मिली बेटी को
आह! न स्नेहिल छाँव।
कर दहेज़ की माँग, न पाए
टिक बेटी के पाँव।
उजियारे कितने कलुषित हैं
प्यारा मेरा गाँव?

छद्म भरे घर उजियारों के
वे हैं कितने क्रूर?

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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