वक़्त कब ठहरा - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण

अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
तक़ती: 22 22 22 22 22 2

गर मायूस हुआ नाकामी से चहरा,
कैसे वो सजे सिर पे जीत का सेहरा।

उनसे ज़ख़्म मिले भूले नहीं हैं हम,
कैसे अब बने रिश्ता आज ये गहरा।

अब है दौर क़यासों का यहाँ देखो,
चाहे मिलना मगर है हर तरफ़ पहरा।

तक़लीफ़ें न सुने लाचार लोगों की,
करते शोर यहाँ अब राज है बहरा।

राहें आज सजी रंगीन फूलों से,
पर 'निर्वाण' बता ये वक़्त कब ठहरा।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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