वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार

अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती: 22‌ 22 22 22

वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है,
आतंक अभी भी ज़िंदा है।

फूल बहुत कोमल होता है,
जैसे अब खार दरिंदा है।

मैने जन गण मन से पूँछा,
वो भारत का बाशिंदा है।

महलों से अच्छे हैं कोटर,
करता आराम परिंदा है।

लाख टके की बात करी औ,
उनकी हर बात चुनिंदा है।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos