चिराग़ों तले ही अँधेरा मिला है - ग़ज़ल - मनजीत भोला

अरकान: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती: 122 122 122 122

चिराग़ों तले ही अँधेरा मिला है,
मिला जो भी भूका कमेरा मिला है।

इमारत सदा ही बनाई हैं जिसने,
उसे पुल के नीचे बसेरा मिला है।

यहाँ पसलियों की नुमाइश लगा कर,
मज़े ख़ूब करता चितेरा मिला है।

कहें ज़िन्दगी या इसे हम तमाशा,
ख़ुदा भी हमें तो लुटेरा मिला है।

अगर बात कीजे हमारे हक़ों की,
न तेरा मिला है न मेरा मिला है।

हमें बस उठाने निकलता है सूरज,
किसी और को ही सवेरा मिला है।

मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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