जीने का मज़ा तो आता है,
औरों के ख़ातिर जीने में।
कितना सुकूँ मिल जाता है,
औरों के आँसू पीने में।
ओ हो हो हो ओ हो हो हो...3
ये जीना भी क्या जीना है,
औरों के ग़म को पीना है।
आँखों से अश्क चुराना है,
होठों पे हँसी इक लाना है।
वरना क्या रक्खा है यारों,
इस दुनिया के सैफीने में।
जीने का मज़ा तो आता है,
औरों के ख़ातिर जीने में।
कितना सुकूँ मिल जाता है,
औरों के आँसू पीने में।
ओ हो हो हो ओ हो हो हो...
कुछ लोग तो ऐसे होते हैं,
औरों के लिए जो रोते हैं।
अपने दामन की ख़ुशियाँ भी,
ग़म के सहेरा में बोते है।
थोड़ा सा प्यार लुटाओ तो,
अपनापन भर कर सीने में।
जीने का मज़ा तो आता है,
औरों के ख़ातिर जीने में।
कितना सुकूँ...।
ओ हो हो हो हो ओ हो हो...।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)