रात - कविता - दीपक राही

रात समंदर सी,
देखो तो दूर तक अँधेरा,
अपने में ढेरों कहानियाँ समेटे हुए,
बे-परवाह, शांत,
अपने आग़ोश में लेकर सुकून देती,
आँखों में अँधेरा रात ही देती,
समंदर ने राज़ डुबाए,
रात ने अनेक राज़ छुपाए,
जुगनूओं की रोशनी को,
रात ने सितारे बनाए,
रात आती है,
सो दर्द जगाती हैं,
समंदर की लहरें है
शोर मचाती,
रात ग़मों का समंदर है 
बन जाती,
अनसुलझे सवालों का हैं,
बवंडर बन जाती,
रात किसी की ना हो अधूरी,
चाहे हो कितनी भी दूरी,
हमारा दिल और समंदर भी,
रात में ही बहकता है,
दिल फ़रेबी,
ढलता भी डूबता भी,
रात ढ़लती फिर आती,
समंदर में लहरें आती जाती,
दोनों ही तरसते किनारे को।
रात एक नई सुबह को लाती,
समंदर वैसा ही रहता है।

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos