मर्यादा - कविता - बृज उमराव

मर्यादा एक सीमा है,
जिसमें सीमित रहना है।
यह है इक तटबंध अनोखा,
जिसमें सब को बंधना है।।

प्रीति प्रेम द्वेष अरि सारे,
मत सीमा को तुम लाँघो।
रहें स्वतंत्र एक हद तक,
तुम ख़ुद को जद में बाँधो।।

कर्म धर्म को करें प्रचारित,
धर्म ध्वजा को फहराएँ। 
दूर करें मन का अंधियारा,
जीवन ज्योति जलाएँ।। 

जो आवश्यक उसको कर,
आसक्ति न पालें आप। 
कर्म प्रधान सफल जीवन,
करना मत तुम पाप।। 

रिश्ते नाते घर समाज,
यह लोकाचार निभाना है। 
न कुछ लेकर आए हैं,
न कुछ लेकर जाना है।। 

तथ्य कोई यदि ग़लत लगे,
मन में तुम अंकुश रखना। 
प्रेम दया करुणा से पूरित,
कभी निरंकुश मत बनना।। 

मर्यादा के पालन मे जो,
जीवन अर्पित कर देते। 
जन नायक की पदवी पा,
यादों में सदा अमर रहते।। 

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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