तेरे वास का स्तंभ प्रहरी हूँ,
तेरे निश्चल आँखों की नींद हूँ,
ना कोई वास अपना,
ना नींद है मेरी आँखों में,
निरंतर तेरे हृदय में जलता प्रेम दीप हूँ।
हाँ मैं शहीद हूँ...
तेरे दिए में जलते दीपों का प्रदीप हूँ,
तेरे रंगों का हरा केसरिया सफ़ेद हूँ,
न कोई धर्म अपना,
ना मैं कोई जाति में,
तेरे मुखारविंद से निकले आयतें और श्लोक हूँ।
हाँ मैं शहीद हूँ...
गंगा की बहती धाराओं का मोड़ हूँ,
हिम से टकराते बादलों का स्वरूप हूँ,
ऐसा पुष्प हूँ जो खिलता हूँ माँ तेरे बाग़ों में,
और तेरे ही बाग़ों में मुरझाता कुसुम हूँ।
हाँ मैं शहीद हूँ...
कीर्ती चौधरी - गाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)