प्रेम की पहली ग़ज़ल - गीत - प्रीति त्रिपाठी

रुक गई है लेखनी
और नेत्र मेरे हैं सजल,
याद आई है मुझे
प्रेम की पहली ग़ज़ल।

हाँ, तुम्हारी धूप से
आरक्त मेरा रूप था,
मुग्ध हो तुमने कहा
कि होंठ मेरे हैं कमल।
याद आई है...

वेदना तो प्रीत की
अभिव्यंजना सी बन गई,
भावना को शब्द देना
हो गया कितना सरल।
याद आई है...

जो घड़ी, पलछिन
बिताए थे हमारे साथ में,
भूल जाओगे मगर
मन बाँवरा जाता मचल।
याद आई है...

रूक गई है लेखनी
और नेत्र मेरे हैं सजल,
याद आई है मुझे
प्रेम की पहली ग़ज़ल।।

प्रीति त्रिपाठी - नई दिल्ली

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