उपहार - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

बने सेतु ख़ुशियाँ मनुज, करें प्रकृति सुखसार।
खिले सुमन सुरभित वतन, रोपण तरु उपहार।।

आत्म मनुज सौन्दर्य ही, जीवन का उपहार।
सुरभि हीन किंशूक कुसुम, बाह्य रूप सुखसार।।

दो दिल का अनुपम मिलन, रचना नव संसार।
सुख दुख ग़म ख़ुशियाँ सकल, है विवाह उपहार।।

सुन्दर तन बन गुलवदन, सज षोडश शृङ्गार।
चपला नटखट चातुरी, प्रिय पायल उपहार।।

छह ऋतुओं में प्रकृति सज, विविध रूप शृङ्गार।
शीताकुल खग पशु मनुज, दे वसन्त उपहार।।

हरित भरित सुष्मित प्रकृति, ऊर्वर भू संसार।
तजो स्वार्थ संभलो मनुज, प्रकृति बने उपहार।।

मकर संक्रान्ति वर्ष का, सुन्दरतम त्यौहार। 
दान धर्म नित पुण्यदा, शान्ति खुशी उपहार।।

रंगीली प्रिय रास मन, होली रंग बयार।
साजन रंगीला त्वरित, दे होली उपहार।।

समरसता के रंग में, सराबोर त्यौहार।
होली मानक एकता, सद्भावन उपहार।।

होली नित सौहार्द्र का, प्रीति मिलन त्यौहार।
मान कीर्ति सुख सम्पदा, मानवता उपहार।।

दुर्गाराधन पर्व यह, महाविजय त्यौहार।
ख़ुशी दीप दीपावली, बनी प्रकृति उपहार।।

न्याय विभव अभिव्यक्ति का, दिया मूल अधिकार।
भीमराव अम्बेदकर, दिया दलित उपहार।।

प्रीति रीति माफ़ी दया, नैतिकता आधार।
क्षमा सत्य सुन्दर शिवम, मानवता उपहार।।

चारु चन्द्र राधा प्रिया, भक्ति प्रीति आगार।
अर्पित तन मन कृष्ण को, दे होली उपहार।।

एक द्वार हो बंद तो, खुले दूसरा द्वार।
नेक सोच सत्पथ क़दम, मिले ध्येय उपहार।।

हो विकास चहुँ दिशि वतन, मानक कारोबार।
तभी शान्ति सुख सम्पदा, जीवन हो उपहार।।

कृष्ण सुदामा मित्रता, स्नेहिल निर्मल धार।
मुरलीधर मनमीत बन, कृष्ण पार्थ उपहार।।

शरणागत श्रीराम मय, हो भारत सुख सार।
करे प्रगति चल राम पथ, प्रेम शान्ति उपहार।।

मातु पिता सत्प्रेरणा, बन उलझन उपचार।
दिग्दर्शक सद्मार्ग की, हितकर यश उपहार।।

दादा नित आशीष दें, दादी दें बस प्यार।
पिता रीढ़ बन ज़िंदगी, माँ आँचल उपहार।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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