टूटती उम्मीदों की उम्मीद - कविता - मंजिरी "निधि"

मन में उत्साह लिए चलें चलो बढ़ते,
टूटती उम्मीदों की उम्मीद से पंथ नया गढ़ते।
साहस रखना है इस घड़ी बड़ी विपदा आन पड़ी,
आफ़त में हैं जान और बाहर हैं मौत खड़ी।
उम्मीदों को साथ रखने में ही जीत है,
सुगम बनी राह जब साथ सभी मीत हैं।
भर उत्साह तू उड़ जा ऐ उम्मीद।
गर तू चाहे मिल जाएगी चौड़ी राह,
चूमले आज गगन को तू बौना मान,
टूटटी उम्मीदों की उम्मीद का तू मौक़ा जान।
चलो सदा ही कठिन ड़गर में मत भार आह,
क्यूँ रुकना फिर बीच भँवर में क्या परवाह।
आएगी फिर भोर सुनहरी कहना मान, 
कारण क्या हैं मानव जीवन का यह ले जान।
दुनिया चाहे जो भी सोचे दे इल्ज़ाम, 
अपने कार्यों की क्षमता को तू पहचान।
टूटती उम्मीदों की उम्मीद का बन उपहार,
ख़ुशियों से होता है जग में सब शृंगार।

मंजिरी "निधि" - बड़ोदा (गुजरात)

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