पल - कविता - निशांत सक्सेना "आहान"

वह पल आज भी दिल में
आराइश करके बैठे हैं।
तेरी जुस्तुजू में अब्सार बिछाए बैठे हैं।
यह हमारी इब्तिला है
हमारे नदीम ही
हमारे अहज़ान से ग़ैर हो बैठे हैं।
क़रीब थे जब वो हमारे
हयात ख़जालत थी हमारी,
आज उनके ख़त को भी हम तरसते हैं।
ख़ामोशी फैली है दिल के ख़ियाबाँ में,
और वो अग़्यार-ए-ख़ुर्रम कर बैठे हैं।
हम उन पलों के गिर्दाब
मैं फँसे बैठे हैं,
वह पल आज भी हम दिल में
आराइश कर के बैठे हैं।

निशांत सक्सेना "आहान" - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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