हालात - कविता - दीपक राही

मौजूदा हालात का,
क्या हम ज़िक्र करें,
जो आने वाला है,
उसकी फ़िक्र करें,
पार्क भी यहाँ शमशान बने,
पानी में है लाशें बहें,
देख कर ऐसी हालत,
कैसी हम चाल चले,
मौजूदा हालात का,
किन से अब हम सवाल करे?

एक लहर ने गोला ज़हर,
दूसरी से अनजान थे,
फेसबुक, व्हाट्सएप 
और यूट्यूब पर बने हम स्टार थे।
यही तो उनकी पीठ पर,
सवार थे,
मेहनतकशों ने ही दिए इम्तेहान थे,
इस मुश्किल हालात में,
वही तो हमारे साथ थे।
अब कैसी हम चाल चले,
मौजूदा हालात का,
किन से अब हम सवाल करे?

बे-फ़िक्र थे जो इस तूफ़ान से,
बह गए अपनी ज़ुबान से,
देखकर इस क़हर को,
उन हवाओं से भी अंजान थे,
अब वही तो अनमोल हैं, 
बाकी सब झोल है,
अब कैसी हम चाल चले,
मौजूदा हालात का,
किन से अब हम सवाल करे?

कतारें बहुत सी देखी,
इस बार तो कुछ नई देखी,
अब तो मृत व्यक्तियों को,
लाइनों में लगते देखा,
लाशो को साइकिल पर,
ढोते हुए देखा,
उस जलते हुए मंज़र को देख,
मन को पतगढ़ बनते देखा,
अब किस से बखान करें,
कैसी हम चाल चले,
मौजूदा हालात का,
किन से अब हम सवाल करे?

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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