डाकिया डाक लाता था - कविता - भगवत पटेल

डाकिया डाक लाता था।
चाल, चरित्र, चेहरा आता था।।
हर पाती का अपना रूपरंग।
आती थी साईकल से, बजाती घंटी टन।।
एक सप्ताह की यात्रा, पाती की चाल।
कुशल क्षेम, सामाजिक सरोकार, गाँव के हाल चाल।।
साथ संदेश के लिखने वाले का चेहरा नज़र आता था।
डाकिया डाक लाता था।।
काग़ज़ के मन में, रिश्तों की फ़िक्र।
खेत खलिहान की बातें, गुड्डा गुड्डी की शादी का ज़िक्र।।
पनघट में जमघट, ठाठ के साथ होती थी मन की बात।
कुशल प्रेम से हम सब रहते दुख सुख बाँटे हम साथ।।
चिठ्टी में पूरा गाँव एक परिवार नज़र आता था।
डाकिया डाक लाता था।।
काग़ज़ की कश्ती, बारिश का पानी।
तांगा ,बैल की सवारी , नानी की कहानी।।
काठ का घोड़ा, मिट्टी के खिलौने।
लकड़ी की पाटी बोरका, टाट पट्टी के बिछौने,
ये सारे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में बनाता था,
जिनमें मेरा चाल, चरित्र, चेहरा नज़र आता था।
इसीलिए डाकिया डाक लाता था।।
चिठ्ठी तार से बेतार हुई,
बदल गया चाल, चरित्र, चेहरे का ढंग।
ग़ायब हो गया पाती का रंग।।
तालाब सूख गए, बारिश का पानी हो गया बेरंग,
अब मोबाइल में केवल चित्र नज़र आता है।
इसीलिए डाकिया अब डाक नहीं लाता है।।
मैं हूँ साक्षी बैलगाड़ी से हवाई जहाज तक के सफ़र का।
चिठ्ठी की खुशबू और मोबाइल के असर का।।
मुझे चिंता है आने वाली पीढ़ी के बसर की।
हो रही शिक्षा और संस्कार में कसर की।।
क्यों कि हम जो उनको हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर दे रहे हैं,
उनमें चाल, चेहरा, चरित्र नज़र नहीं आता है।
इसीलिए डाकिया डाक नहीं लाता है।।

भगवत पटेल - जालौन (उत्तर प्रदेश)

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