अरे पगले तु जपले हरि का नाम,
काम तेरे वो ही आएगा।।
क्यों करता है मेरा-मेरा,
कुछ भी नहीं है यहाँ पर तेरा।
अरे पगले है ये मिथ्या जगत तमाम,
काम तेरे वो ही आएगा।।
वो ही जग का पालन कर्ता,
क्यों ना उसका सुमिरन करता।
अरे पगले वो ले गिरते नै थाम,
काम तेरे वो ही आएगा।।
उसके बिना ना पता हिलता,
उसका हुक्म ना टाला टलता।
अरे पगले वो सकल गुणों का धाम,
काम तेरे वो ही आएगा।।
बार-बार ना मिलता मौक़ा,
हर की प्रीत ना देती धोखा।
बल्मभिये तु रटले सुबह और शाम,
काम तेरे वो ही आएगा।।
समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)