मूल्यवान जीवन समय, कर पौरुष धर्मार्थ।
प्रीति रीति सद्नीति पथ, करो त्याग परमार्थ।।
इन्तज़ार करता नहीं, वक़्त चक्र गतिमान।
कर जीवन उपयोग नित, सुयश सुफल अरमान।।
सत्ता सुख मद मोह वश, खोता बुद्धि विवेक।
समझ नाश आरब्ध है, खल कामी तज नेक।।
अहंकार सत्ता तिमिर, हरे ज्ञान आलोक।
समझ वक़्त बदलाव नित, मिटे प्रजा का शोक।।
त्यागे सत्ता लोभ में, शील त्याग गुण धर्म।
क्षोभ नहीं दुर्भाष में, हिंसा रत दुष्कर्म।।
बदले की नित आग में, जले मनुज आचार।
हर्षित मन परवेदना, साथ बने गद्दार।।
मानवता रख ताख पर, नैतिकता अवसान।
सत्य न्याय इन्सानियत, तजे क्रूर शैतान।।
सत्ता है ऐसी बला, बने मनुज हैवान।
भूल नार्य सम्मान को, वृद्ध करे अपमान।।
सत्ता है ऐसी नशा, शासक होता चूर।
चापलूस से नित घिरे, काम क्रोध मजबूर।।
निरपराध दे यातना, नाश करे सर्वस्व।
उन्मादित सत्ता फ़लक, सार्वभौम वर्चस्व।।
ढाये जनमत त्रासदी, खोए जन आधार।
मति विनाश हो नाश में, शिव चिन्तन लाचार।।
संगति खल द्रोही वतन, सब मर्यादा तोड़।
अंग भंग जन मत करे, निरंकूश बेजोड़।।
कुचले जन अभिव्यक्ति को, नशाबाज़ दे साथ।
क्षत विक्षत घर अतिक्रमण, सत्ता बढ़ता हाथ।।
राजधर्म पथ भूलकर, दानवता आग़ाज़।
तुला पुनः नारी दमन, दे विनाश आवाज।।
माना मन ईश्वर स्वयं, सार्वभौम सरताज।
है प्रमाण इतिहास में, अन्त विकट मदराज।।
वक़्त बड़ी गतिशीलता, कर सत्पथ उपयोग।
पलभर की यह ज़िंदगी, परहित मन संयोग।।
शान्ति सुखद मुस्कान जन, सत्ता तुली विनाश।
कवि निकुंज मन वेदना, प्रभु सुबुद्धि दें काश।।
सबका वक़्त न एक सम, परिवर्तन संसार।
कभी नाव गाड़ी चढ़े, गाड़ी नाव सवार।।
वक़्त की नज़ाकत समझ, कोरोना अभिशाप।
तन मन धन से मदद कर, हरो मनुज संताप।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली