पंखा - बाल कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

तीन पंखुड़ी जब मिल जाएँ,
सरपट सरपट दौड़ी जाएँ।
दौड़ दौड़ कर हवा चलाएँ,

हवा हमे ये मिलती जाए,
नन्ही गुड़िया हवा ये पाए,
हवा चले तो निंदिया आए।

इसको पंखा कहते हैं,
हर घर में ये रहते हैं।

डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव - जालौन (उत्तर प्रदेश)

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