ख़्वाब जब भी नया देखना तुम कभी - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212 212 212 212

ख़्वाब जब भी नया देखना तुम कभी,
अपने घर की तरफ़ लौटना तुम कभी।

ख़्वाब देखा तो देखा क्या अपने लिए,
दूसरों के लिए सोचना तुम कभी।

ज़िंदगी का सफ़र यूँ तो आसान है,
नेकियों से न मुँह मोड़ना तुम कभी।

जब भी मौक़ा मिले कोई उपकार का,
तब न इंसानियत छोड़ना तुम कभी।

एक सा वक़्त रहता कहाँ है यहाँ,
फ़लसफ़ा ज़िंदगी बाँचना तुम कभी।

दिल को दरिया बनाना ज़रा सीख लो,
हद न अपनी कभी लाँघना तुम कभी।

दिल ना टूटे किसी का तेरे कर्म से,
हर क़दम पर स्वयं जाँचना तुम कभी।

आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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