समयिया के रथवा पे, उमरिया सवार बा।
बालू नियर मुट्ठी में, जिनगिया हमार बा।।
हे! कवन सुख पइबय तू,
माया के बटोरी।
केतनो सहेज लेबय,
होइ जाई चोरी।।
टूटी जब पिंजरवा त, डहरिया अपार बा।
बालू नियर मुट्ठी में, जिनगिया हमार बा।।
काहे तन मिलल मानव,
सोचा सौ बार हो।
भटक मत जहिहय बाबू,
जनम एक बार हो।।
बाँध ले गठरिया खूब, लहरिया जवार बा।
बालू नियर मुट्ठी में, जिनगिया हमार बा।।
काहे केहू संत बा,
काहे केहू चोर,
काहे केहू निराधम,
काहे केहू मोर।।
भ्रम के टाटी टूटल, मनइया गँवार बा।
बालू नियर मुट्ठी में, जिनगिया हमार बा।।
एक-एक पल क जीवन,
बाटे अनमोल हो।
सोई के बितावा मत,
कमाइ सद् तोल हो।
पढ़ा देश काल निर्णय, बदनिया उघार बा।
बालू नियर मुट्ठी में, जिनगिया हमार बा।।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)